
शादी ना करने की ऐसी अद्भुत दलील, शायद एक बिरला इंसान ही अपनी माँ से कर सकता था और बेशक भगत सिंह इतिहास में अपने तरीके का अनोखा व्यक्तित्व था – निडर, सत्यव्रत, कर्तव्य निष्ठ, निष्काम कर्मयोगी। एक ऐसा योद्धा था जिसका कोई सानी नहीं था और आज 91 साल बाद भी उसकी तरह का दूसरा इंसान ढूंढे नहीं मिलता। तेईस साल की मासूम उम्र में भारत की आजादी के लिए उसने जो हँसते – हँसते कुर्बानी दी, उसकी जितनी भी तारीफ़ की जाये कम है। पर अफ़सोस, कि हम करोडो भारतवासी उन परमवीरों की शहादत को याद नहीं करते जिनके लहू से आज हमारा समाज जीवित है।
“तू ना रो माँ कि तू है भगत सिंह की माँ, मर के भी लाल तेरा मरेगा नहीं
घोड़ी चढ़ के तो लाते हैं दुल्हन सभी, हँस के हर कोई फांसी चढ़ेगा नहीं।।”
तेईस मार्च की तारीख एक बार फिर आ गई लेकिन किसी चैनल या रेडियो स्टेशन पर से भगत सिंह, राजगुरु या सुखदेव के सम्मान में कोई एक पंक्ति भी श्रधान्जली के रूप में प्रसारित नहीं हुई जब की निकृष्ट और लुंज पुंज से नेताओ के जन्मदिन या पुण्यतिथी पर सारा मीडिया तंत्र कसीदे पढता रहता है। किसी राजनेता या अभिनेता को भगत सिंह या उसके साथी याद नहीं आये क्योंकि वो शायद आज बिकने लायक सामग्री या विज्ञापन नहीं हैं और ना ही किसी राजनितिक वोट बैंक का हिस्सा। मुझे लगता है कि वो शायर बहुत मासूम थे जो समझते थे की शहीदों की बरसी पर लोग कृतज्ञता स्वरूप, हजारों की संख्या में उनकी मजारों पर मेले लगाएंगे। पर आईपीएल, डांस, फिल्म, फैशन, नफरत और हिंसा में लिप्त देशवासीयों को इतनी फुर्सत कहाँ की वो किसी शहीद को याद करें?
राजनीतिज्ञों और व्यापारियों के लिए ये शहीद इसलिए मायने नहीं रखते क्योंकि अंतर-राष्ट्रीय स्तर पर इनकी याद में कोई सेमिनार आयोजित नहीं होता। नेताओं को नोटों की मालाओं से फुर्सत नहीं है और जब जनता सेंसेक्स की सुई से ही देश की प्रगति नाप कर खुश हो रही है, तब शहीदों की फिक्र भला कौन करे? कितना भोला था भगत सिंह जिसने देशवासीयों को अपनी मृत्यु पर रोने या शोक करने से मना किया था पर उसका एक आग्रह भी था जिसे करोड़ो की भीड़ ने भुला दिया। भगत सिंह का आग्रह था :
“जब शहीदों की अर्थी उठे धूम से,
देश वालों तुम आंसू बहाना नहीं,
पर मनाओ जब आज़ाद भारत का दिन
उस घड़ी हमें भूल जाना नहीं,
लौट कर आ सके ना जहाँ में तो क्या,
याद बन कर दिलों में तो आ जायेंगे।।”
भगत सिंह सरीखे देश भक्तों ने तो अपने वचन निभा दिए पर क्या हम उनके साथ गददारी नहीं कर रहे कि उनके एहसानों को हम याद तक नहीं करते? याद करना तो दूर, हम देश को बांटने का काम कर रहे हैं। बहुत से लोग आज हर पल देश में नफरत की आग सुलगा रहे हैं जब कि वो नहीं जानते कि इस आग के शोलों में उनके बच्चों की मौत निश्चित है।
चौंकाने वाली बात ये है कि हमारे देश की भूख, प्यास और गरीबी के बारे में सरकार या पूंजीपति तो पहले से ही बेफिक्र हैं पर आम नागरिक भी, कोरोना की महामारी और वितीय तकलीफों के बावजूद, जातिवाद, धर्म और नफरत की फसल क्यूँ बो रहा है, ये समझ से परे है। कुछ ही लोग हैं जो भगत सिंह के आदर्शों पर चल, इंसान बन देश को बचाने में लगे हैं वर्ना भारत में आजकल सिर्फ नफरत का बाज़ार पनप रहा है जिसमें सेहत, शिक्षा और विकास की उपलब्धियां हासिल करने की बजाये, हर जगह राजनेता, फिल्म अभिनेता, खिलाड़ी और पूंजीपति के भौंडे, धार्मिक प्रदर्शनों में लिप्त हैं।
सच में भगत सिंह सरीखे हजारों शहीदों के साथ हमने धोखा किया है। बात देशभक्ति की होती है और लोग पूजा करते हैं सिर्फ पैसे और नफरत की। ऐ भगत सिंह, हमें माफ़ करना, हम तेरे लायक नहीं हैं। अंग्रेजों ने सिर्फ तुझे फांसी दी थी, लेकिन हमने तेरे आदर्शो की हत्या की है। बड़े दुःख के साथ कबूल करता हूँ कि भारत में अब ज़्यादातर नागरिक, सांप्रदायिक संकीर्णता से ग्रस्त हैं, देशद्रोही हैं और इसलिए माफ़ी मांगता हूँ कि:
“कोई सीखा नहीं तुझ से, वतन तेरा मिट रहा है,
नफरत की फिज़ा में आज मेरा दम घुट रहा है।।”
Arvind Ajmera
बहुत सुंदर और वर्तमान के परिपेक्ष में सटीक लेख जो जरूर आज के बिखरते समाज के जज़्बात को हिलाएगा ।आप का हर लेख एक मिसाल और प्रेरणा है आज हर समझदार नागरिक के लिए ।
Justice V S Dave
सशक्त लेख द्वारा दी गई श्रद्धांजली पर साधुवाद
dhirendrakumarthakore
Nice.
Dr ajay sharma
सटीक, मार्मिक ओर समयानुकूल विवेचन
दीपक सर l