बड़े शहरों में हर जगह कोई ना कोई भिखारी खड़ा नज़र आता है जिससे पिण्ड छुड़ाना बहुत मुश्किल होता है। लाख कोशिश कीजिये, इनसे पार पाना बहुत कठिन होता क्योंकि रोनी सी सूरत बना, कोई झूठी कहानी गढ़, अपना उल्लू सीधा करना ये खूब जानते हैं। सौ में से निन्यानवे बेईमान वाले भारत देश में, झूठ का प्रचलन इतना बढ़ गया है कि राजनीतिज्ञ से लेकर अभिनेता तथा अफसर से ले कर भिखारी तक किसी पर लोगों को अब विश्वास नहीं रह गया है।

भीख मांगने वालों की संख्या देश में इतनी बढ़ गई है कि इनमें से बहुतेरे अब टेलीविज़न चैनलों पर भी नज़र आने लगे हैं। जी हाँ, ये एक अमिट सच है जिसे आप रोज़ देख सकते हैं। यकीन ना आये तो कोई सा भी टेलीविज़न चैनल लगा लीजिये, आप को वहाँ पर विभिन्न प्रकार के लोग अलग-अलग अंदाज़ में भीख मांगते नज़र आ जायेंगे। रियलिटी शो के नाम पर आज कुछ ऐसे सीरियल चालू हो गये हैं जिनमें आपको नई जमात के कई भिखारी, तरह-तरह के जुमले इस्तेमाल कर, लोगों की जेब से पैसा ऐंठते दिखाई दे जायेंगे। शोर मचाने का ये धंधा इतना कामयाब हो चला है कि अब इससे टेलीविज़न चैनल भी खूब चांदी कूट रहे हैं।

बेशर्मी और बेईमानी का ये नायाब तरीका, सरे राह डाका डालने जैसा है हलांकि इसमें लुटने वाले खुद भी कुछ हद तक गुनाहगार जरूर है। दिन दहाड़े डकैती की इससे बड़ी मिसाल पेश नहीं की जा सकती जहाँ लोग खुद लुटने के लिये आगे आते हैं। छोटे उस्ताद हों या फिल्मी सितारे, सब के सब, रो-रो कर और गला फाड़ कर टीवी पर, अपनी-अपनी जीत के लिये भीख मांग रहे हैं और जनता जनार्दन है कि पागलों की भांति, बेतरतीब व बेहिसाब एसएमएस करें जा रही है। क्या ज़माना आ गया है कि देश के लिये कुर्बानी देने के लिये कोई सामने नहीं आयेगा पर मूर्ख बनने के लिये एक नहीं, हज़ारों तैयार खड़े हैं, बस हुक्म कीजिये।

रियलिटी शो एक अजीब सर्कस हैं जहाँ लोग प्रतिभा दिखाने की बजाये, हर वक्त रोते रहते हैं या भीख मांगते रहते हैं। गुस्सा तो तब आता है जब प्रतियोगी अपनी प्रतिभा के दम पर जीतने की बजाये प्रांत, भाषा, जाति या वर्ग की दुहाई दे कर, लोगों से वोट लेने की कोशिश करते हैं। यही नहीं, प्रतियोगियों के परिवार और कठिनाइयों का सिलसिलेवार वर्णन कर लोगों की सहानुभूति बटोरने की भद्दी चेष्टा की जाती है, जिसका खामियाजा कई बार ऐसे शख्स को उठाना पड़ता है जो काबिल तो है पर वाक चातुर्य की कला से अनभिज्ञ है। दो कौड़ी के गायन और नृत्य के लिये ऐसी संज्ञाये और उपमाऐं रची जाती हैं, ऐसे आँखों से आंसू बहाए जाते हैं (हालांकि मेकअप खराब न हो इसका भी पूरा ध्यान रखा जाता है) कि उस बेहूदगी को देख, नामी-गिरामी लोगों के चाल-चलन, चरित्र, इंसानियत और सोच पर प्रश्न चिन्ह खड़े हो जाते हैं!  

बड़े-बड़े फिल्मी सितारे तक आज कल चैनल दर चैनल चक्कर काट, अपनी नई फिल्मों के लिये हित होने के लिये भीख मांगते नज़र आते हैं। इस सब के लिये वो जिस प्रकार के वो स्वांग रचते हैं, बेहूदा हरकतें करते हैं या ऊलजलूल बातें करते हैं, उन्हें देख कर उनकी अक्ल और लाचारी पर तरस आता है। बेशक, व्यापारिक और भौतिक सफलता के लिये बहुत मेहनत करनी पड़ती है, पर आजकल कैमरे के सामने जिस तरह के भौंडे और भद्दे मज़ाक या अश्लील करतब किये जाते हैं, उनसे सामाजिक और नैतिक निकृष्टता और दिवालियेपन पे तरस आता है।

एक ज़माना था जब लोग प्रतिभा के दम पर अपनी काबिलीयत साबित करते थे। उन्हें किसी का एहसान लेना या ग़लत तरीके से जीतना गवारा न था। पर आज ज़रूरी नहीं कि जीत का सेहरा प्रतिभाशाली या गुणवान के सर ही बंधे क्योंकि आज जो जितना अधिक शोर मचाता है या जितनी सफलता के संग भीड़ इक्कठ्ठी करता है वो उतना ही अधिक सफल कहलाता है। शोर मचाना आज के युग में सफलता की कुंजी मानी जाती है और इसी लिये राजनीति से ले कर फिल्म, क्रीडा और टीवी कार्यक्रमों में जो जितना अधिक शोर मचाता है, वो उतना अधिक सुर्खियों में जगह पाता है। इस गिरावट के लिये बेशक नामचीन विभूतियाँ और मीडिया दोषी हैं, लेकिन इस सामाजिक पतन में जनता-जनार्दन भी बहुत हद तक ज़िम्मेदार है क्योंकि ऐसे निकृष्ट लोगों और उनके निम्न-स्तरीय व्यवहार, विचार और आचरण का बहिष्कार करने की बजाये, जनता उनको बेवजह तवज्जो देती है, सर आँखों पर बैठाती है। आज अगर हर क्षेत्र में निकृष्टता का बोल बाला है तो इसलिये कि आम नागरिक, सार्वजनिक जीवन में होने वाली अभद्रता और निकृष्टता के खिलाफ आवाज़ नहीं उठाता. उसे फूहड़ता और बेहूदगी स्वीकार्य है।

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