संसार के अनमोल रत्न: रफ़ी साहब
ये तो सर्वविदित है कि स्वर्गीय मोहम्मद रफ़ी के चाहने वालों की फेहरिस्त बहुत लंबी है पर जिस तरह करोड़ों लोग आज भी गायिकी के बादशाह के प्रति प्रेम और सम्मान दर्शाते हैं, वो एक चमत्कार सा लगता है। ये इसलिये क्यूंकि आज जब नामचीन सितारों और नेताओं के लिए आदर भाव नहीं है और धुरंधर गायक-गायिकाओं को उनके जीवन काल में ही भुला दिया गया है, ऐसे में रफ़ी साहब के प्रति लोगों की अगाध श्रद्धा को एक अपवाद ही कहा जा सकता है। बेशक परमात्मा के इस वरदान के पीछे कुछ खास कारण ज़रूर होंगे जिनकी वजह से मंदिर-मस्जिद, जात-पात के झगड़ों से परे, तमाम लोग रफ़ी साहब को एक अलग मुकाम पे रख, भक्ति भाव से पूजते हैं और उन्हें परमात्मा की आवाज़ मानते हैं।
आध्यात्मिक ग्रंथों के अनुसार, दुनिया में पीर-पैगम्बर, संत और मसीहा निश्छल, निष्कपट, सरल इंसान होते हैं और चूंकि उनका प्रत्येक कर्म मानव सेवा को समर्पित होता है, इसलिये उनके संसर्ग में आने वालों को हमेशा एक आलौकिक अनुभूति होती है। सात दशकों से अगर रफ़ी साहब सब के चहेते हैं और लोगों ने उनके गीतों को आत्मसात किया हुआ है तो वो इसलिये कि रफ़ी साहब ने एक संत की भांति, प्रत्येक रचना को इतनी तन्मयता से गाया कि उनकी इमानदारी, उनकी सुरीली आवाज़ में घुल कर, आलौकिक आनंद पैदा करती है। निसंदेह, दुनिया भर में उनके गीतों का जादू बरकरार है तो इसका श्रेय उनके पवित्र और समर्पित गायन को जाता है जिसे सुन हरेक श्रोता को एक दिव्य अनुभूति होती है।
गुणीजन मानते हैं कि रफ़ी साहब की आवाज़ में ईश्वर का प्यार बरसता है क्यूंकि वो उत्कृष्ट कलाकार के साथ-साथ, बहुत अच्छे इंसान थे। अहंकार, लोभ, द्वेष या राजनीति से सर्वथा अछूते इस कलाकार ने बहुतेरे संगीतकारों – निर्माताओं को स्थापित करने के लिये सैंकड़ों गीत मुफ्त गा दिए और अनेकों कलाकारों की चुपचाप आर्थिक मदद की क्यूंकि गायिकी उनका धर्म-ईमान था। इसी वजह से उनकी आवाज़ ईश्वर की करुणा से झंकृत है जिसमें एक और जहाँ चांदनी की शीतलता है तो बिजली की थिरकन भी, ओस की निर्मलता है तो सौंधी-सौंधी हवा की रूहानी ताकत और शोखी भी, हिमालय की बुलंदी और सागर की गहराई में गुंथी इस आवाज़ की मखमली अदायगी एक तरह से दिव्य अमृत का साक्षात्कार ही है।
संगीतकार खय्याम बताते हैं कि “ताउम्र रफ़ी साहब ने हरेक संगीतकार की रचना की बारीकियों को एक विद्यार्थी की तरह सीखा और फिर गाया” और इसीलिये उनके सुर झरने के पानी की तरह साफ, निर्मल और मीठे बहते थे। मानव मन की परतों को रफ़ी साहब एक मनीषी की तरह समझते थे और इसीलिये उनके गीतों में भाव है, प्रवाह है, पात्र है, सहजता है और उनकी आवाज़ आत्मा में घर कर जाती है। आप ध्यान देंगे तो पायेंगे रफ़ी साहब की आवाज़ में गज़ब की अभिनय क्षमता है और उसमें हर रंग, हर भाव, हर अदा का समावेश है, इसीलिये किसी भी चरित्र पर उनकी आवाज़ थोपी हुई नहीं लगती है। अमीर-गरीब, शहरी-ग्रामीण, बूढ़ा-जवान, चंचल-गंभीर व्यक्तित्व से लेकर सैनिक हो या किसान, मजदूर हो या बाबू, सब के लिये रफ़ी साहब की आवाज़ उपयुक्त है क्यूंकि उसमें योगेश्वर का सम्पूर्ण भाव बरसता है।
गाना रूमानी हो या दर्दीला, मिलन का हो या विछोह का, घुमावदार कठिन तान हो या ग़ज़ल की कोमलता, कव्वाली का जोश हो या प्रणय का उन्माद, परमेश्वर की उपासना हो या देश प्रेम की सुलगती ज्वाला, रफ़ी साहब शायर-गीतकार के उद्गारों को अपने अनूठे अंदाज़ में रूह बख्श देते थे। उनकी आवाज़ की विविधता, व्यापकता, मिठास, सोज़, कशिश और लोच के कारण ही रफ़ी साहब के लिये संगीतकारों ने तीन सप्तक के गीत सृजित किये जबकि पहले ज़्यादातर गीत एक सप्तक तक सीमित रहते थे। उनके समकालीन गायक-गायिकायें जानते थे कि शब्दों के उच्चारण और भावों को संगीतमय अभिव्यक्ती देने में वो अपनी तरह के अकेले गायक थे और कोई अचरज नहीं कि मन्ना डे सरीखे उत्तम कलाकार ने रफ़ी साहब को सारे गायक-गायिकाओं में सर्वश्रेष्ठ माना है क्यूंकि स्वरों को श्रोताओं की आत्मा में तस्वीर की तरह उतार देने की असाधारण कला सिर्फ रफ़ी साहब ही जानते थे। संगीतकार जयदेव ने भी 1981 में मुझे कहा था कि नौशाद, सचिन देव बर्मन, शंकर-जयकिशन और ओ. पी. नैय्यर, रफ़ी साहब को रेंज, सोज़, विविधता और भाव-अभिव्यक्ति के मामले में सभी गायक-गायिकाओं में सर्वोच्च कलाकार मानते थे।
मन्ना डे का गंभीर विश्लेषण वाकई सही है क्यूंकि मुकेश जहाँ दर्दीले गीतों के गायक थे तो तलत महमूद नर्मों नाज़ुक ग़ज़लों के माहिर, खुद मन्ना डे ज़्यादातर शास्त्रीय संगीत पर आधारित गीतों से जुड़े रहे तो किशोर कुमार हलके-फुल्के, चंचल गीतों के लिये ही जाने गये। आप ध्यान करेंगे तो पायेंगे कि किशोर कुमार को किसी संगीतकार ने कभी कोई भजन, ग़ज़ल, कव्वाली या राष्ट्र भक्ती का गीत गाने को नहीं दिया ठीक जिस प्रकार मन्ना डे को ज़्यादातर पाश्चात्य स्वर लहरियों से दूर रखा गया क्यूंकि उनकी आवाजों की कुछ सीमाएं थीं। और तो और, रफ़ी साहब की असाधारण क्षमता के कारण ही जब किसी एक ही गीत को स्त्री-पुरुष स्वरों में अलग-अलग रिकॉर्ड किया गया तो लता मंगेशकर, आशा भोंसले और सुमन कल्यानपुर के बजाये, रफ़ी साहब के गाये संस्करण जनता में हमेशा ज़्यादा मशहूर हुए।
अक्सर शोहरत की बुलंदियों पे बैठे लोगों की शान में झूठी तारीफें की जाती हैं पर असली प्रशंसा वो ही होती है जो आपके प्रतिद्वंदीयों, सह-कर्मियों या सेवकों द्वारा की जाती है। रफ़ी साहब की मृत्यु पर गायक तलत महमूद ने रुंधे गले से कहा था “काश, अल्लाह-ताला मेरी जान ले लेता और रफ़ी साहब की जान बख्श देता क्यूंकि दुनिया को उनकी बहुत ज़रूरत थी” ; शायद इससे बड़ा सम्मान और श्रृद्धांजलि किसी भी इंसान के लिये अभिव्यक्त नहीं की जा सकती। अदाकार दिलीप कुमार फरमाते थे कि बेपनाह प्रसिद्धी के बावजूद, रफ़ी साहब इंसानियत की मिसाल रहे और “माईक के अलावा, हमेशा इतने नम्र स्वर में बोलते थे कि सुनना मुश्किल होता था। चालीस साल के उनके फ़िल्मी सफर में कभी किसी ने उनको किसी से कोई अभद्र व्यवहार करते नहीं देखा और मैंने किसी के मुख से रफ़ी साहब के बारे में कोई अपशब्द नहीं सुना”।
संगीतकार नौशाद के अनुसार रफ़ी साहब पर संगीत कला को अभिमान था क्यूंकि “सुनी सबने मोहब्बत की जुबां आवाज़ में तेरी, धड़कता है दिले हिन्दोस्तां आवाज़ में तेरी”, पर अफ़सोस, “हिन्दुस्तान की धडकन” को सरकारी तंत्र ने भारत रत्न से नहीं नवाजा क्यूंकि रफ़ी साहब कभी किसी राजनीतिक पार्टी या प्रान्त विशेष के मोहरे नहीं बने और उन्होनें किसी नेता की प्रशंसा के कसीदे नहीं पढ़े। जिस बिरले कलाकार ने अपनी कला से दुनिया को प्रेम और एकता के सूत्र में पिरो दिया, उसे भारत रत्न नहीं देना क्या करोडो लोगों के साथ अन्याय नहीं है? अजीब बात ये है कि संगीत जगत में जिसका कोई सानी नहीं था, जिसको भजन, गीत, ग़ज़ल, कव्वाली, पाश्चात्य और शास्त्रीय संगीत पर सामान महारत हासिल थी, उससे ज़्यादा सरकारी पुरूस्कार बहुतेरे छुटभैय्यों को दे दिए गये जबकि रफ़ी साहब भारतीय संस्कृति के सर्वधर्म समभाव और इंसानियत के सर्वोत्तम प्रतीक थे।
पर इससे क्या फर्क पड़ता है क्यूंकि सरकारों की बेरुखी के बावजूद, ईश्वर ने असंख्य लोगों के हृदय में रफ़ी साहब को चिर स्थापित कर रखा है और धर्म, जाति, राष्ट्र और भाषा से परे, रफ़ी साहब दुनिया भर के दिलों पर राज कर रहे हैं। इन्टरनेट गवाह है कि अपार संख्या में क्यूँ विदेशी उनके दीवाने हैं और क्यूँ संसार में हर पल, उनके गीत बजते रहते हैं। शायद यही ईश्वर का वरदान है, सबसे बड़ा पुरूस्कार है और इंसानियत की जीत भी क्यूंकि महल हो या झोंपड़ा, हर जगह रफ़ी साहब के ही गीत गूँज रहे हैं।
मुझे याद है बांद्रा के गुरु नानक पार्क में स्थित उनके घर में एक सूक्ती लटकी रहती थी जिस पर लिखा था: “जितना झुकेगा जो उतना उरोज पायेगा, ईमान है जिस दिल में वो बुलंदी पर जाएगा”, यथार्थ में रफ़ी साहब अक्षरक्ष उस सूक्ति को जीते रहे और कोई शक नहीं क्यूँ कुछ वर्ष पूर्व एक सिने पत्रिका द्वारा कराये गये सर्वेक्षण में रफ़ी साहब को फिल्म उद्योग का सबसे लोकप्रिय कलाकार चुना गया।
Kundan Sharma
बहुत सुंदर लिखा आपने। मोहम्मद रफी साहब के लिए संगीत एक तरह की पूजा रही जिसे उन्होंने पूरी पवित्रता से किया। मेरे महबूब का शीर्षक गीत उन्होंने जिस तल्लीनता से गाया उसके लिए शब्द नही है बस आंखें बंद करके सुनने का मन करता है
Kundan Sharma
बहुत सुंदर लिखा आपने। मोहम्मद रफी साहब के लिए संगीत एक तरह की पूजा रही जिसे उन्होंने पूरी पवित्रता से किया। मेरे महबूब का शीर्षक गीत उन्होंने जिस तल्लीनता से गाया उसके लिए शब्द नही है बस आंखें बंद करके सुनने का मन करता है।
DEEPAK MAHAAN
आपकी तारीफ़ के लिए तहे दिल से शुक्रिया. पहले जवाब न दे सका कुछ तकनीकी कारणों से, उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ.
dhirendrakumarthakore
A legend singer. No one near him to compare. Nice article.